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कविता

जाड़े में असाढ़े से परल बाड़े

प्रकाश उदय


आवत बाटे सावन, शुरू होई नहवावन
भोला जाड़े में असाढ़े से परल बाड़े
एगो लांगा लेखा देह, राखे राखे में लपेट
लोग धो-धा के उधारे प परल बाड़े

एने बरखा के मारे, गंगा मारें धारे-धारे
जट पावें ना सम्‍हारे, होत जाले जा किनारे
''सिव-सिव हो दोहाई
मुँह मारीं सेवकाई''
उहो देबे प रिजाइने अड़ल बाड़े

बाटे बड़ी-बड़ी फेर, बाकी सबका से ढेर
हई कलसा के छेद, देखऽ टपकल फेर
''गउरा, धउरऽ हो दोहाई...''
आ त- ''ढेर ना चोन्‍हाईं-
अभी छोटका के धोए के धयल बाटे

- ''बाड़ू बड़ी गिर्हिथिन, खाली लइके के फिकिर''
- ''बाड़ऽ बापे बड़ी नीक, खाली अपने जिकिर''
- ''बाड़ पथरे के बेटी''
- ''बाटे जहरे नरेटी''
बात बाते-घाते बढ़त बड़ल बाटे

सुनि बगल के हल्‍ला, ज्ञानवापी में से अल्‍ला
पूछें - ''भइल का ए भोला, महकइलऽ जा महल्‍ला
एगो माइक बाटे माथे
एगो तहनी का साथे
भाँग बूट-गाँजा फेरू का घटल बाटे''

दूनो जाना के भेंटाइल, माने दुख दोहराइल
ई नहाने नकुआइल, ऊ अजाने अँउजाइल
इनके लागेला सोमार
उनके जुम्‍मा के बोखार
दुख कहले सुनल से घटल बाटे
भोला जाड़े में असाढ़े से परल बाड़े


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